VyakaranaChandrodaya Chaturth Khand: व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड

Rs. 395.00
  • Book Name VyakaranaChandrodaya Chaturth Khand: व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड
  • Author Sahshtri
  • Language, Pages Sanskrit & Hindi, 312 Pgs. (PB)
  • Last Updated 2024 / 10 / 15
  • ISBN 9789359669601

Guaranteed safe checkout

amazon paymentsapple paybitcoingoogle paypaypalvisa
VyakaranaChandrodaya Chaturth Khand: व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड
- +

व्याकरणचंद्रोदय (कारक व समास)" (Vyakarana Chandrodaya - Karak or Samaas) चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथ है, जिसमें व्याकरण के कारक और समास विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह पुस्तक संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, क्योंकि इसमें व्याकरण के महत्वपूर्ण पहलुओं को सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है।

व्याकरणचंद्रोदय (Vyakarana Chandrodaya) का उद्देश्य:

"व्याकरणचंद्रोदय" का अर्थ है "व्याकरण का उदय", जो संस्कृत व्याकरण की गहराई और विस्तार को उजागर करने वाली एक प्रमुख रचना है। इसमें मुख्यतः दो महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया है:

  1. कारक (Karak):

    • कारक वह तत्व होते हैं जो वाक्य में क्रिया के साथ सम्बंधित होते हैं और वाक्य में प्रत्येक शब्द के कार्य को स्पष्ट करते हैं।

    • संस्कृत में कारक को क्रिया के साथ सम्बन्धित करके वाक्य के तत्वों की पहचान की जाती है। कुल मिलाकर आठ मुख्य कारक होते हैं:

      1. कर्ता (Nominator): जो कार्य करने वाला है।
      2. कर्म (Object): जिस पर कार्य किया जा रहा है।
      3. करण (Instrument): जिससे कार्य किया जा रहा है।
      4. संप्रदान (Recipient): जिसे कार्य दिया जा रहा है।
      5. अपादान (Source): जिससे कार्य लिया जा रहा है।
      6. संबंध (Relation): किसी अन्य चीज़ के साथ संबंध बताने वाला।
      7. अधिकार (Possessor): जिसको अधिकार है।
      8. सम्प्रति (Goal): जो कार्य का अंतिम लक्ष्य है।
    • कारक का सही प्रयोग और समझ व्याकरण के अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वाक्य के अर्थ को स्पष्ट और सटीक रूप से प्रकट करता है।

  2. समास (Samaas):

    • समास संस्कृत में शब्दों के जोड़ से बनने वाला एक प्रकार का संक्षिप्त रूप है, जिसमें दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नया अर्थ प्रकट करते हैं।
    • समास के प्रकारों की चर्चा करते हुए इस ग्रंथ में समास के विभिन्न रूपों पर विस्तृत विवरण दिया गया है। प्रमुख समासों में शामिल हैं:
      1. द्वन्द्व समास (Dvandva Samaas): इसमें दो शब्दों का समावेश होता है, जैसे "राम-लक्ष्मण" (राम और लक्ष्मण)।
      2. तत्पुरुष समास (Tatpurusha Samaas): इसमें पहला शब्द दूसरे शब्द का गुण, क्रिया या सम्बन्ध दर्शाता है, जैसे "राजकुमार" (राजा का पुत्र)।
      3. विभक्ति समास (Vibhakti Samaas): इसमें शब्दों के माध्यम से विभक्ति का प्रदर्शन किया जाता है, जैसे "पुस्तकालय" (पुस्तक का स्थान)।
      4. अव्ययीभाव समास (Avyayibhava Samaas): इसमें एक अव्यय (जो स्थिर होता है, जैसे 'में', 'के साथ') दूसरे शब्द के साथ जुड़कर एक नया अर्थ बनाता है, जैसे "सहकार" (साथ काम करने वाला)।

व्याकरणचंद्रोदय की विशेषताएँ:

  • स्पष्टता: चारुदेव शास्त्री ने इस ग्रंथ में कारक और समास के जटिल विषयों को सरल भाषा में समझाया है, जिससे अध्ययन में आसानी होती है।
  • प्रत्येक विषय पर विस्तार: इस ग्रंथ में न केवल कारक और समास के सामान्य सिद्धांतों को प्रस्तुत किया गया है, बल्कि उनके विभिन्न रूपों, प्रयोगों और उदाहरणों के माध्यम से इनकी गहराई को भी स्पष्ट किया गया है।
  • उदाहरणों के साथ व्याख्या: समास और कारक के विभिन्न प्रकारों को उदाहरणों के माध्यम से समझाया गया है, जिससे छात्रों को इनकी अवधारणाओं को पकड़ने में मदद मिलती है।

व्याकरणचंद्रोदय के अध्ययन के लाभ:

  1. संस्कृत व्याकरण का गहरा ज्ञान: इस ग्रंथ के माध्यम से छात्रों को संस्कृत व्याकरण के बुनियादी सिद्धांतों की गहरी समझ प्राप्त होती है, जो उनके भाषा कौशल को बढ़ाता है।
  2. वाक्य निर्माण में सहायक: कारक और समास के अध्ययन से छात्र सही वाक्य निर्माण में सक्षम हो सकते हैं, जिससे उनका संवाद और लेखन प्रभावी बनता है।
  3. संस्कृत साहित्य में प्रवीणता: संस्कृत के साहित्यिक, धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों की पढ़ाई में समास और कारक की समझ अत्यंत आवश्यक है। इससे शास्त्रों और संस्कृत ग्रंथों को समझने में सुविधा होती है।

निष्कर्ष:

"व्याकरणचंद्रोदय - कारक व समास" चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित एक अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथ है, जो संस्कृत व्याकरण के कारक और समास पर विस्तृत और स्पष्ट रूप से प्रकाश डालता है। यह ग्रंथ संस्कृत के विद्यार्थियों, अध्यापकों और शोधकर्ताओं के लिए एक बहुमूल्य संसाधन है, जो व्याकरण के इन महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने और अभ्यास करने में मदद करता है।

4o mini

You said:
VyakaranaChandrodaya pancham Khand (Shiksha, Sangya,Paribhasha, Samhita): व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड by CHarudev Shashtri
ChatGPT said:
ChatGPT

"व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड" (Vyakarana Chandrodaya Pancham Khand) चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण पर आधारित एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस पंचम खंड में शिक्षा (Shiksha), संग्या (Sangya), परिभाषा (Paribhasha), और संहिता (Samhita) जैसे संस्कृत व्याकरण के मौलिक और आधारभूत विषयों पर गहरे विस्तार से चर्चा की गई है।

व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड का उद्देश्य:

पंचम खंड का उद्देश्य संस्कृत व्याकरण के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट रूप से समझाना और छात्रों, शोधकर्ताओं, और संस्कृत प्रेमियों को व्याकरण के गहरे सिद्धांतों से परिचित कराना है। यह खंड विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी है, जो संस्कृत भाषा की संरचना और उसकी नियमावली को सटीक रूप से समझने की इच्छा रखते हैं।

व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड के मुख्य विषय:

1. शिक्षा (Shiksha):

  • शिक्षा संस्कृत के उच्चारण और ध्वनि विज्ञान से संबंधित है। यह विशेष रूप से संस्कृत ध्वनियों के प्रयोग और उच्चारण के नियमों को स्पष्ट करता है।
  • इसमें अक्षरों की ध्वनि, स्वरों और व्यंजनों की विशेषताएँ, संधि, और वर्णों का स्वरूप आदि पर विस्तार से चर्चा की जाती है।
  • शिक्षा के सिद्धांतों का पालन करके कोई भी व्यक्ति संस्कृत के शब्दों और वाक्यांशों को सही ढंग से बोल सकता है और लिख सकता है।

2. संग्या (Sangya):

  • संग्या का अर्थ है नाम या संज्ञा। यह उस शब्द या तत्व को संदर्भित करता है, जो किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु या विचार का नाम है।
  • संग्या के अंतर्गत व्यक्तिवाचक संग्या, जातिवाचक संग्या, समूहवाचक संग्या, आदि प्रकारों की व्याख्या की जाती है।
  • यह भी बताया जाता है कि संग्या का उपयोग किस प्रकार से वाक्य में किया जाता है, ताकि उसका अर्थ स्पष्ट हो सके और संवाद में सुसंगति बनी रहे।

3. परिभाषा (Paribhasha):

  • परिभाषा का अर्थ है "परिभाषा" या "परिभाषिक शब्दार्थ"। यह उन नियमों और सिद्धांतों की व्याख्या है, जो किसी विशेष व्याकरणिक तत्व के अर्थ और उपयोग को स्पष्ट करते हैं।
  • इस खंड में संस्कृत के व्याकरणिक परिभाषाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है, जैसे विभक्ति, तद्धित, सन्धि आदि की परिभाषाएँ।
  • परिभाषा के माध्यम से छात्र संस्कृत के विभिन्न तत्वों और उनके आपसी संबंधों को समझ सकते हैं।

4. संहिता (Samhita):

  • संहिता का अर्थ है संग्रह या संयोजन। यह शब्दों और वाक्यांशों के समुचित उपयोग और वाक्य निर्माण के नियम पर केंद्रित है।
  • इस खंड में संस्कृत के शब्दों की संहिता और उनका संयोजन कैसे होता है, इस पर प्रकाश डाला गया है। इसमें वाक्य के सही निर्माण के लिए आवश्यक सिद्धांतों और नियमों का विवरण मिलता है।
  • संहिता में वाक्य रचना, शब्दों के आपसी संबंध, और वाक्य के तत्वों की संहिता से संवाद को स्पष्ट और सटीक बनाने के तरीकों की चर्चा की जाती है।

व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड की विशेषताएँ:

  1. व्याकरण के आधारभूत सिद्धांत:

    • इस खंड में शिक्षा, संग्या, परिभाषा, और संहिता के सिद्धांतों को सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन सिद्धांतों के माध्यम से छात्रों को संस्कृत व्याकरण के जटिल पहलुओं को समझने में मदद मिलती है।
  2. व्याकरण के सूक्ष्म विवरण:

    • शिक्षा से लेकर संहिता तक, हर विषय पर विस्तृत और सूक्ष्म विवरण दिया गया है, जिससे छात्रों को संस्कृत की शब्द संरचना और वाक्य निर्माण के नियमों की गहरी समझ प्राप्त होती है।
  3. संस्कृत भाषा का सटीक उच्चारण:

    • इस खंड में शिक्षा के माध्यम से संस्कृत के सही उच्चारण पर ध्यान दिया गया है, जिससे पाठक और विद्यार्थी संस्कृत शब्दों का सही उच्चारण कर सकते हैं और संवाद में अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
  4. संज्ञा और परिभाषा का अध्ययन:

    • संग्या और परिभाषा पर दी गई जानकारी छात्रों को भाषा के बुनियादी तत्वों को समझने में मदद करती है, जिससे वे संस्कृत के जटिल वाक्य और शब्दों को सटीक रूप से पहचान सकते हैं।
  5. संहिता के माध्यम से वाक्य निर्माण:

    • संहिता के अध्ययन से छात्र वाक्य निर्माण के सटीक सिद्धांत समझ सकते हैं और संस्कृत में प्रभावी संवाद स्थापित करने में सक्षम हो सकते हैं। यह संस्कृत के साहित्यिक और दार्शनिक ग्रंथों को समझने के लिए भी आवश्यक है।

निष्कर्ष:

"व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड" चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित एक अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो संस्कृत व्याकरण के शिक्षा, संग्या, परिभाषा, और संहिता जैसे बुनियादी विषयों पर विस्तृत और स्पष्ट रूप में प्रकाश डालता है।

यह पुस्तक विशेष रूप से उन छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए उपयुक्त है जो संस्कृत की गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं और संस्कृत की सही व्याकरणिक संरचना को समझना चाहते हैं। पंचम खंड संस्कृत की संरचना और शब्द प्रयोग की समग्रता को समझने में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है।

4o mini

You said:
VyakaranaChandrodaya Chaturth Khand: व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड by Sri Charudev Shashtri
ChatGPT said:
ChatGPT

"व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड" (Vyakarana Chandrodaya Chaturth Khand) श्री चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण पर आधारित एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ संस्कृत व्याकरण के उन सिद्धांतों और नियमों का विस्तार से वर्णन करता है, जो विशेष रूप से व्याकरण के चौथे खंड में आते हैं। यह खंड विशेष रूप से विभक्ति, संधि, धातु और प्रत्यय जैसे प्रमुख विषयों पर ध्यान केंद्रित करता है।

व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड का उद्देश्य:

चतुर्थ खंड का मुख्य उद्देश्य संस्कृत व्याकरण के माध्यम से वाक्य निर्माण की प्रक्रिया, धातु और प्रत्ययों की उपयोगिता, विभक्ति का स्वरूप, और संधि के नियमों को समझाना है। यह खंड विशेष रूप से उन छात्रों के लिए उपयोगी है, जो संस्कृत के व्याकरण के तकनीकी और गहरे पहलुओं को समझना चाहते हैं। इस खंड में संस्कृत के व्याकरणिक नियमों के प्रभावी उपयोग पर जोर दिया गया है ताकि पाठक संस्कृत की संरचना को अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकें।

व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड के मुख्य विषय:

1. विभक्ति (Vibhakti):

  • विभक्ति संस्कृत में वह कारक होते हैं जो किसी वाक्य में शब्दों के आपसी संबंध को स्पष्ट करते हैं। विभक्ति शब्दों को उनके कार्य के अनुसार विभिन्न रूपों में परिवर्तित करती है।
  • विभक्ति के प्रकार: संस्कृत में कुल मिलाकर सात विभक्तियाँ होती हैं:
    1. प्रथमा (Nominative) – कर्ता
    2. द्वितीया (Accusative) – कर्म
    3. तृतीया (Instrumental) – करण
    4. चतुर्थी (Dative) – संप्रदान
    5. पंचमी (Ablative) – अपादान
    6. षष्ठी (Genitive) – सम्बन्ध
    7. सप्तमी (Locative) – स्थान
  • विभक्ति का प्रयोग वाक्य में शब्दों के कार्य और संबंध को स्पष्ट करने के लिए किया जाता है। इस खंड में विभक्ति के प्रयोग और उसकी सिद्धांतों की विस्तृत चर्चा की जाती है।

2. संधि (Sandhi):

  • संधि वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा संस्कृत में दो या दो से अधिक ध्वनियों का संयोग होता है और उनसे एक नई ध्वनि का निर्माण होता है।
  • संधि के प्रकार:
    1. स्वर संधि (Vowel Sandhi)
    2. व्यंजन संधि (Consonant Sandhi)
    3. विसर्ग संधि (Visarga Sandhi)
  • संधि के सिद्धांतों का अध्ययन संस्कृत में शब्दों के सही रूप और उच्चारण को समझने में मदद करता है, और इस खंड में संधि के नियमों की विस्तृत व्याख्या की जाती है।

3. धातु (Dhatu):

  • धातु संस्कृत में मूल शब्द होते हैं, जिनसे अन्य शब्दों का निर्माण होता है। यह एक तरह से शब्दों का आधार होता है।
  • धातु के रूप: संस्कृत में प्रत्येक धातु के अलग-अलग रूप होते हैं, जो वाक्य में भिन्न-भिन्न प्रकार के वचन और काल में परिवर्तित होते हैं।
  • धातु के प्रयोग: धातु के प्रयोग से क्रिया, संज्ञा, विशेषण आदि का निर्माण होता है। इस खंड में विभिन्न धातुओं के रूपों, उनके प्रयोग और रूपान्तरण की विस्तार से चर्चा की जाती है।

4. प्रत्यय (Pratyaya):

  • प्रत्यय वह अंश होते हैं जो धातु, संज्ञा या सर्वनाम के बाद जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं। संस्कृत में प्रत्यय से ही शब्दों के रूपों का निर्माण होता है।
  • प्रत्यय के प्रकार:
    1. संज्ञा प्रत्यय (Noun Suffixes)
    2. क्रिया प्रत्यय (Verb Suffixes)
    3. विशेषण प्रत्यय (Adjective Suffixes)
  • प्रत्यय से जुड़े नियमों और उदाहरणों की सहायता से छात्र संस्कृत के शब्द निर्माण की प्रक्रिया को आसानी से समझ सकते हैं।

व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड की विशेषताएँ:

  1. संस्कृत व्याकरण के गहरे सिद्धांत:

    • चतुर्थ खंड में विभक्ति, संधि, धातु और प्रत्यय के विषयों की विस्तार से व्याख्या की गई है, जिससे छात्र संस्कृत के व्याकरण के बुनियादी और जटिल पहलुओं को अच्छे से समझ सकते हैं।
  2. उदाहरण और व्याख्या:

    • हर सिद्धांत के साथ उदाहरण दिए गए हैं, ताकि विद्यार्थियों को संस्कृत के इन सिद्धांतों को सही प्रकार से समझने में कोई कठिनाई न हो। इन उदाहरणों के माध्यम से वाक्य निर्माण और उच्चारण की सटीकता को भी स्पष्ट किया गया है।
  3. शब्द और वाक्य संरचना:

    • इस खंड के माध्यम से शब्दों के रूपांतरण, संधि और प्रत्यय की प्रक्रिया को समझकर छात्र संस्कृत के वाक्य निर्माण में दक्षता प्राप्त कर सकते हैं।
  4. समीक्षा और विश्लेषण:

    • व्याकरण के प्रत्येक सिद्धांत का समीक्षा और विश्लेषण किया गया है, जिससे छात्रों को न केवल सिद्धांत समझ में आते हैं, बल्कि उन्हें व्यावहारिक रूप से भी लागू करने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष:

"व्याकरणचन्द्रोदय चतुर्थ खण्ड" श्री चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो विभक्ति, संधि, धातु, और प्रत्यय के सिद्धांतों को विस्तार से समझाने में मदद करता है। यह पुस्तक संस्कृत के छात्रों, शोधकर्ताओं और व्याकरण के प्रति रुचि रखने वालों के लिए एक अमूल्य संसाधन है।

इस खंड में दिए गए नियम और उदाहरण संस्कृत भाषा की संरचना को स्पष्ट करने में सहायक हैं और संस्कृत के अध्ययन में गहरी समझ उत्पन्न करने में मदद करते हैं।

Delivery and Shipping Policy

  • INTERNATIONAL SHIPPING
    • Rs.1000-1100/kg
    • ESTD. Delivery Time: 2-3 weeks (depending on location)
    • Bubble Wrapped with Extra Padding

 

  • NATIONAL SHIPPING
    • NCR: Rs. 30/half kg
    • Standard: Rs. 80/half kg
    • Express shipments also available on Request
    • ESTD. Delivery Time: Ranging from 1-4 days up to 7 business days (Depending on your choice of Delivery)

 

  • TRACKING
    • All orders; national or international, will be provided with a Tracking ID to check the status of their respective orders
    • Depending on the Shipping Service, Tracking ID may be used on their respective tracking portals

 

Frequently Asked Questions (FAQs)

Domestic Shipping: 3-4 Days (after shipping)

International Shipping: 1-2 weeks (based on your location)

You will receive an email once your order has been shipped or you can email us if you didn't receive tracking details (info@mlbd.co.in)

Every book that we sell is the latest edition except all the rare books

Yes, we do provide free shipping, only on domestic orders (within India) above Rs.1500

Translation missing: en.general.search.loading