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कालाम-सुत्त

Author(s): Rajendra Prasad
Publisher: Siddharth Books
Language: Hindi
Total Pages: 132
Available in: Paperback
Regular price Rs. 175.00
Unit price per

Description

कालाम-सुत्त (Kalama Sutta) बौद्ध धर्म के एक प्रसिद्ध सुत्त (धार्मिक उपदेश) का नाम है, जो अंगुत्तर निकाय (Anguttara Nikaya) में पाया जाता है। यह सुत्त विशेष रूप से बुद्ध द्वारा दिया गया एक उपदेश है, जिसमें उन्होंने अपने अनुयायियों को यह सिखाया कि वे किसी भी बात को केवल सुनकर या मानकर न अपनाएं, बल्कि उसकी वास्तविकता का विवेकपूर्ण और तर्कसंगत तरीके से विश्लेषण करें।

कालाम-सुत्त का मुख्य संदेश: बुद्ध ने कालाम गांव के लोगों को यह समझाने के लिए यह उपदेश दिया था कि वे किसी भी शिक्षा, विश्वास, या परंपरा को केवल इसलिए न मानें क्योंकि वह पुरानी है, किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति ने कहा है, या कोई अन्य लोग इसे मानते हैं। इसके बजाय, वे अपनी खुद की समझ, अनुभव, और तर्क पर आधारित निर्णय लें। बुद्ध ने यह 10 बिंदुओं में स्पष्ट किया कि क्या उन्हें सत्य मानने योग्य है:

  1. पारंपरिक विश्वास: किसी भी परंपरा या विश्वास को केवल इसलिए स्वीकार न करें क्योंकि वह पुरानी है।
  2. किसी सम्मानित व्यक्ति द्वारा कहा गया: किसी प्रमुख व्यक्ति ने जो कहा है, उसे बिना सोचे-समझे न अपनाएं।
  3. महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ: किसी धार्मिक ग्रंथ को केवल इसलिए न मानें क्योंकि वह किसी ने लिखा हो।
  4. आध्यात्मिक अनुभव: अपने व्यक्तिगत अनुभवों से जो सत्य प्रकट होता है, वही अपनाएं।
  5. मनुष्य की समझ: बुद्धिमानी से ही सत्य की पहचान की जा सकती है।

इसके बाद, बुद्ध ने उपदेश में यह भी कहा कि जो बातें उनके अनुयायी अनुभव से सत्य पाएंगे, वही उन्हें जीवन में उपयोगी और सही साबित होंगी। कालाम-सुत्त का संदेश यह है कि विवेकपूर्ण सोच और आत्मनिरीक्षण से ही जीवन में सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।

कालाम-सुत्त आज भी यह सिखाता है कि किसी भी धार्मिक, दार्शनिक या जीवन के दृष्टिकोण को स्वीकार करने से पहले तर्क, सत्य, और अनुभव को प्रमुखता दी जानी चाहिए।