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Bodhicaryavatar: बोधिचर्यावतार

Author(s): Shanti Bhikshu shastri
Publisher: Gautam Book Center
Language: Sanskrit & Hindi
Total Pages: 260
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 250.00
Unit price per

Description

बोधिचर्यावतार (Bodhicaryavatara) संस्कृत साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे महान बौद्ध आचार्य शांतिदेव ने लिखा। यह ग्रंथ विशेष रूप से महायान बौद्ध धर्म की प्रगति के मार्ग को समझाता है और उसे आत्मसात करने की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

बोधिचर्यावतार का महत्व:

  • "बोधिचर्यावतार" का शाब्दिक अर्थ है "बोधिसत्त्व के आचरण की शुरुआत"। इसमें बोधिसत्त्व (जो दूसरों के कल्याण के लिए बुद्धत्व की ओर अग्रसर होते हैं) के जीवन के आदर्श आचरण को प्रस्तुत किया गया है।
  • यह ग्रंथ बोधिसत्त्व के मार्ग (बोधिचित्त) और दया, करुणा, धैर्य, आत्म-नियंत्रण जैसे गुणों के अभ्यास के महत्व पर जोर देता है।

ग्रंथ के प्रमुख अंश:

  1. प्रथम अध्याय: इसमें बोधिसत्त्व के उद्देश्य और उसकी महिमा पर चर्चा की जाती है। यह अध्याय बोधिचित्त (बुद्धत्व की ओर अग्रसर होने की भावना) के महत्व को समझाता है।
  2. द्वितीय अध्याय: बोधिसत्त्व की शिक्षा और सद्गुणों को विकसित करने के उपायों को समझाया गया है।
  3. तृतीय अध्याय से आगे: अन्य अध्यायों में मानसिक शांति, आत्म-नियंत्रण, परिग्रह और दूसरों के प्रति सहानुभूति के महत्व पर गहरी चर्चा की जाती है।

बोधिचर्यावतार का संदेश:

  • साधना का मार्ग: इस ग्रंथ में व्यक्ति को केवल अपने उद्धार के लिए नहीं, बल्कि अन्य जीवों के कल्याण के लिए भी काम करने की प्रेरणा दी जाती है।
  • दया और करुणा: बोधिसत्त्व को आत्मानुभूति से अधिक दूसरों की पीड़ा को कम करने और उनकी मदद करने की दिशा में जीवन व्यतीत करने के लिए कहा जाता है।
  • संसार में बंधन और मुक्ति: यह ग्रंथ संसार के कष्टों को समझाता है और व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति की प्राप्ति के लिए अभ्यास का मार्ग बताता है।

शांतिदेव का योगदान:

शांतिदेव का यह कार्य महायान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है, क्योंकि इसने उन्हें न केवल साधना के तरीके बताए, बल्कि उनके उद्देश्य और जीवन की असली पहचान को भी स्पष्ट किया। बोधिचर्यावतार का प्रभाव आज भी बौद्ध साधकों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।