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गौतम बुद्ध का जीवन और धर्म दर्शन भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वे बौद्ध धर्म के संस्थापक थे, और उनका जीवन और उपदेश आज भी दुनिया भर में प्रासंगिक हैं।
गौतम बुद्ध का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था और वे शाक्य族 के राजा शुद्धोधन और रानी माया के पुत्र थे। बचपन में सिद्धार्थ का जीवन ऐश्वर्य और सुख से भरा था।
राजमहल में जीवन: सिद्धार्थ का पालन-पोषण महल में हुआ था, जहां उन्हें बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलग रखा गया था। उनके पिता चाहते थे कि उनका पुत्र कभी भी दुःख का अनुभव न करे, इस कारण उन्होंने सिद्धार्थ को हर प्रकार के दुख और परेशानी से बचा रखा था।
महल से बाहर निकलना: एक दिन, सिद्धार्थ ने महल से बाहर निकलने का निर्णय लिया। जब वे बाहर गए, तो उन्होंने चार दृश्य देखे जो उनके जीवन की दिशा बदलने वाले थे:
संन्यास और साधना: इन दृश्यों से प्रभावित होकर सिद्धार्थ ने घर, परिवार और ऐश्वर्य का त्याग किया और जंगल में जाकर साधना शुरू की। वे विभिन्न गुरुओं के पास गए और कठोर तपस्या की, लेकिन अंततः उन्हें यह महसूस हुआ कि कठोर तपस्या से मुक्ति नहीं मिल सकती।
बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति: एक दिन, सिद्धार्थ ने बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान लगाकर बैठने का निर्णय लिया। उन्होंने संकल्प किया कि वे तब तक नहीं उठेंगे जब तक उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं हो जाता। कई दिनों तक ध्यान करने के बाद, उन्हें "बोधि" यानी ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे गौतम बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध हुए।
गौतम बुद्ध ने अपने अनुभवों और ज्ञान को मानवता के लाभ के लिए साझा किया। उनका धर्म और दर्शन सरल, व्यावहारिक और जीवन के वास्तविकता से जुड़ा हुआ था।
चार आर्य सत्य (चार नोबल ट्रुथ्स):
आष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path): यह आठ कदमों का एक मार्ग है, जिसका पालन करके व्यक्ति दुःख से मुक्त हो सकता है और निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त कर सकता है। ये आठ सिद्धांत हैं:
कर्म और पुनर्जन्म: बुद्ध ने यह भी सिखाया कि हमारे कर्म (अच्छे और बुरे) हमारे भविष्य को प्रभावित करते हैं। अच्छे कर्म हमें सुख और शांति की ओर ले जाते हैं, जबकि बुरे कर्म दुःख और कष्ट की ओर। पुनर्जन्म की अवधारणा भी बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण है, जिसमें व्यक्ति का जीवन चक्र चलता रहता है, जब तक वह निर्वाण को प्राप्त नहीं कर लेता।
मध्यम मार्ग: बुद्ध ने यह भी सिखाया कि जीवन का मार्ग न तो अत्यधिक भोग विलासिता में होना चाहिए और न ही अत्यधिक तपस्या में। उन्हें विश्वास था कि जीवन का सही मार्ग "मध्यम मार्ग" है, जिसमें संतुलन और संयम होता है।
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