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Ayurved Sar Sangrah

Author(s): Vaidyanath Ayurved Bhawan
Publisher: SRI VEDHNATH AYURVED BHAWAN
Language: Hindi
Total Pages: 856
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 475.00
Unit price per

Description

आयुर्वेद सार संग्रह का उद्देश्य आयुर्वेद के प्रमुख सिद्धांतों, उपचारों और औषधियों का संक्षिप्त रूप में सार प्रस्तुत करना है। यह संग्रह आयुर्वेद के ज्ञान को सरल और प्रभावी ढंग से समझने में मदद करता है। निम्नलिखित में आयुर्वेद के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का संग्रह प्रस्तुत किया गया है:

1. आयुर्वेद का अर्थ:

आयुर्वेद (अर्थात् "आयु" + "वेद") जीवन और आयु के शास्त्र को कहते हैं। यह एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, जो शरीर, मन, और आत्मा के संतुलन पर आधारित है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य को बनाए रखना और रोगों से मुक्ति दिलाना है।

2. त्रिदोष सिद्धांत (Tridosha Theory):

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में तीन प्रमुख दोष होते हैं:

  • वात: वायु तत्व से संबंधित, जो शारीरिक गति और मानसिक कार्यों को नियंत्रित करता है।
  • पित्त: अग्नि तत्व से संबंधित, जो पाचन, ऊर्जा और तापमान को नियंत्रित करता है।
  • कफ: जल और पृथ्वी तत्व से संबंधित, जो शरीर की संरचना और स्थिरता को बनाए रखता है।

स्वास्थ्य तब होता है जब ये तीन दोष संतुलित होते हैं, और रोग तब उत्पन्न होता है जब इनमें से कोई एक या अधिक दोष असंतुलित होते हैं।

3. पंच महाभूत सिद्धांत:

आयुर्वेद में यह माना जाता है कि सभी जीवित प्राणियों का गठन पांच तत्वों (महाभूतों) से होता है:

  • पृथ्वी (Earth)
  • जल (Water)
  • आग्नि (Fire)
  • वायु (Air)
  • आकाश (Ether)

इन तत्वों का संतुलन शरीर के स्वास्थ्य और मनोवस्था पर प्रभाव डालता है।

4. आयुर्वेदिक उपचार विधियाँ:

आयुर्वेद में रोगों का इलाज प्राकृतिक औषधियों, आहार, जीवनशैली, ध्यान, प्राणायाम, और पंचकर्म (detoxification therapies) के माध्यम से किया जाता है। प्रमुख उपचार विधियाँ निम्नलिखित हैं:

  • औषधियाँ: हर्बल दवाइयाँ जैसे अश्वगंधा, त्रिफला, तुलसी, नीम, शतावरी, आदि।
  • आहार: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए संतुलित आहार का महत्व।
  • पंचकर्म: शरीर को शुद्ध करने के लिए विशेष चिकित्सा पद्धतियाँ जैसे बस्ती (एनिमा), अभ्यंग (मालिश), सिरसेध (शिरोरविधि), आदि।
  • प्राणायाम और ध्यान: मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए श्वास-प्रश्वास के अभ्यास।

5. आयुर्वेद में रोगों की श्रेणी:

आयुर्वेद में रोगों को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है:

  • दोषजन्य रोग: जब शरीर के दोष (वात, पित्त, कफ) असंतुलित होते हैं।
  • धातुजन्य रोग: जब शरीर के सात धातुओं (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र, और रुद्ध) का असंतुलन होता है।
  • मलजन्य रोग: जब शरीर के मल (पश्चिम, मूत्र, पसीना, आदि) का असंतुलन होता है।

6. आयुर्वेद में जीवनशैली (Dinacharya और Ritucharya):

आयुर्वेद में जीवनशैली को सही दिशा में रखना बहुत महत्वपूर्ण है। यह दो प्रमुख अवधारणाओं पर आधारित है:

  • दिनचर्या (Dinacharya): दैनिक दिनचर्या में समय पर सोना, जागना, भोजन करना, व्यायाम करना, ध्यान करना आदि।
  • ऋतुचर्या (Ritucharya): मौसम के अनुसार आहार और जीवनशैली में परिवर्तन करना।

7. सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक आहार (Ayurvedic Diet):

आयुर्वेद के अनुसार, आहार का सेवन व्यक्तिगत प्रकृति (वात, पित्त, कफ) के अनुसार करना चाहिए। इसमें विशेष ध्यान रखा जाता है:

  • ताजे, पके हुए, और हलके भोजन का सेवन।
  • तले-भुने या भारी आहार से बचना।
  • मौसम के अनुसार आहार की विविधता।

8. प्राकृतिक उपचार:

आयुर्वेद में प्राकृतिक उपचारों पर जोर दिया गया है, जैसे हर्बल औषधियाँ, आयुर्वेदिक तेल, और तेलों से मालिश (अभ्यंग), योग और प्राचीन तकनीकों का इस्तेमाल।

9. ध्यान और मानसिक स्वास्थ्य:

आयुर्वेद में मानसिक स्वास्थ्य को भी महत्वपूर्ण माना गया है। मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध है। ध्यान, योग, प्राणायाम और सकारात्मक सोच मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।

10. आयुर्वेद और समग्र स्वास्थ्य:

आयुर्वेद में स्वास्थ्य का मतलब केवल रोगों का न होना नहीं है, बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन का संपूर्ण रूप है। आयुर्वेद में उपचार के दौरान व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का ध्यान रखा जाता है।