भारतीय पुरालेख का अध्ययन, जिसे "Indian Epigraphy" भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास, संस्कृति, भाषा, और धर्मों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाला एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। पुरालेखों (inscriptions) का अध्ययन विशेष रूप से लेखन और शिलालेखों के रूप में मिलती है, जो प्राचीन समय में साम्राज्यों, शासकों, धार्मिक संस्थाओं और अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित थे।
भारतीय पुरालेख अध्ययन के प्रमुख पहलू:
लेखन शैलियाँ (Scripts): भारतीय पुरालेखों में विभिन्न लेखन शैलियाँ देखी जाती हैं, जैसे ब्राह्मी, खरोष्ठी, देव नागरी, ताम्र लेखन, और दक्षिण भारतीय लिपियाँ। प्रत्येक लिपि का अध्ययन, उस समय के समाज और संस्कृति के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
धार्मिक और शासकीय शिलालेख: शिलालेखों में शासकों के आदेश, युद्ध की घोषणाएँ, दान-प्रतिज्ञाएँ, और धार्मिक प्रेरणा मिलती हैं। उदाहरण स्वरूप, अशोक के शिलालेखों से बौद्ध धर्म के फैलाव और उनके शासन की नीति के बारे में जानकारी मिलती है।
भाषाएँ और साहित्य: पुरालेखों में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग होता था जैसे संस्कृत, प्राकृत, तमिल, और पाली। इन भाषाओं का अध्ययन भारत के भाषाई और साहित्यिक इतिहास को समझने में सहायक होता है।
भौतिक प्रमाण: पुरालेखों का अध्ययन केवल भाषा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके भौतिक रूप (जैसे ताम्र पत्र, पत्थर, धातु) और उनके संरचनात्मक डिज़ाइन (जैसे मंदिरों की दीवारों पर लिखे शिलालेख) के अध्ययन के माध्यम से भी किया जाता है। यह प्राचीन भारत के स्थापत्य और कारीगरी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है।
इतिहास और राजनीति: शिलालेखों से हमें प्राचीन भारत के शासकों, उनके शासनकाल, उनकी नीतियों, युद्धों और क्षेत्रीय विवादों के बारे में जानकारी मिलती है। जैसे कि गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय और समुद्रगुप्त के शिलालेख इतिहासकारों के लिए अमूल्य संसाधन हैं।
समाज और संस्कृति: पुरालेखों में समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रतिबिंबित किया गया है, जैसे सामाजिक व्यवस्था, जातिवाद, स्त्री अधिकार, व्यापार और धर्म। यह भारतीय समाज के बदलते रूपों और उसके विकास की कहानी बयान करते हैं।
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