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पालि महाव्याकरण (Pāli Mahāvyākaraṇa) एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो पाली भाषा के व्याकरण पर आधारित है। यह ग्रंथ प्राचीन भारतीय भाषा विज्ञान का हिस्सा है और विशेष रूप से बौद्ध धर्म के संदर्भ में प्रयोग में आता है। पालि महाव्याकरण का उद्देश्य पालि भाषा के शुद्ध प्रयोग को समझाना और उसकी संरचना को परिभाषित करना है।
पालि व्याकरण: यह ग्रंथ पालि भाषा के नियमों और संरचना को समझने का प्रयास करता है। पाली भाषा, जो बौद्ध साहित्य में मुख्य रूप से प्रयोग होती है, की व्याकरणिक विश्लेषण के लिए यह ग्रंथ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
व्याकरणिक विधि: यह ग्रंथ शब्दों, उनके रूपों, और वाक्य संरचना को समझाने में मदद करता है। यह पाली व्याकरण के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है, जैसे संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण आदि के रूपों की पहचान।
संस्कृत और पालि में अंतर: संस्कृत और पालि दोनों भाषाएँ भारतीय भाषाओं के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन पालि में कुछ विशेषताएँ हैं, जिन्हें इस ग्रंथ के माध्यम से समझाया गया है।
बौद्ध साहित्य: बौद्ध धर्म के धार्मिक ग्रंथ जैसे त्रिपिटक (सुत्त पिटक, विनय पिटक, अभिधम्म पिटक) पालि में हैं, और उनके सही अर्थ को समझने के लिए पाली महाव्याकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है।
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