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Table ki Kala: Sarbhut, Parampara evam Srujanatmakta (Hindi) - Motilal Banarsidass #author

Table ki Kala: Sarbhut, Parampara evam Srujanatmakta (Hindi)

Author(s): Sudhir Kumar Saxena
Publisher: Vijay Books
Language: Hindi
Total Pages: 143
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 700.00
Unit price per

Description

तबला की कला" भारतीय संगीत के महत्वपूर्ण और अद्भुत कला रूपों में से एक है। यह न केवल एक वाद्य यंत्र है, बल्कि इसके माध्यम से भारतीय संगीत के विभिन्न रागों और तालों को प्रस्तुत करने का एक अद्वितीय तरीका भी है। तबला भारतीय शास्त्रीय संगीत में ताल की जटिलताओं और विविधताओं को प्रस्तुत करता है।

1. सारभूत (Essence)

तबला की कला का सार इसके लय, ताल और विविध ध्वनियों में छिपा होता है। यह दो ड्रमों—बाएं और दाएं (बाया और दहिना)—के माध्यम से बजाया जाता है। हर एक तबला वादक अपनी उंगलियों और हथेलियों का सही उपयोग करके इन तालों को जीवंत करता है। तबला का प्रत्येक स्वर और ध्वनि एक विशेष अर्थ और भावना व्यक्त करती है। शास्त्रीय संगीत में तबला की आवाज राग की भावना को पूरी तरह से साकार करती है।

2. परंपरा (Tradition)

तबला भारतीय संगीत की प्राचीन परंपराओं का हिस्सा है। इसकी जड़ें भारतीय शास्त्रीय संगीत में गहरी हैं, विशेष रूप से हिंदुस्तानी संगीत में। तबला का उपयोग विशेष रूप से ख्याल, ध्रुपद, ठुमरी और टप्पा जैसे रचनाओं में होता है। इसकी परंपरा को भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख रूप से संरक्षित किया गया है, और कई महान तबला वादकों ने इसकी विधियों को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया है। प्रसिद्ध तबला वादक जैसे ज़ाकिर हुसैन, अली अकबर खान, और किशन महाराज ने तबला की कला को वैश्विक मंच तक पहुँचाया।

3. सृजनात्मकता (Creativity)

तबला की कला में सृजनात्मकता का विशेष स्थान है। हर तबला वादक अपनी विशेष शैली और तकनीक विकसित करता है, जो उसे दूसरों से अलग पहचान देती है। वादक तालों और गति की रचनात्मकता का प्रयोग करके श्रोताओं को एक नई ध्वनि और अनुभव देता है। तबला पर ताल की विभिन्न थापों, मात्राओं और बोलों (जैसे धे, dhin, na, ti, etc.) का संयोजन एक अद्वितीय लयात्मक संरचना बनाता है।