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Live-in-Relationship: A Dimension Of Applied Philosophy(Hindi)

Author(s): Shyamal Kishor
Publisher: Motilal Banarsidass
Language: Hindi
Total Pages: 160
Available in: Paperback
Regular price Rs. 325.00
Unit price per

Description

लिव-इन रिलेशनशिप: एक आवेदनात्मक दर्शन की दिशा

लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) एक सामाजिक और कानूनी अवधारणा है, जिसे भारतीय समाज में पिछले कुछ दशकों में अधिक चर्चा में लाया गया है। यह एक ऐसा संबंध है जिसमें दो व्यक्ति बिना शादी किए एक साथ रहते हैं और अपने जीवन को साझा करते हैं। यह परंपरागत विवाह के मानदंडों से अलग है, और इसमें कोई कानूनी विवाह बंधन नहीं होता।

आवेदनात्मक दर्शन (Applied Philosophy):
आवेदनात्मक दर्शन का उद्देश्य जीवन के वास्तविक प्रश्नों और समस्याओं को समझने और उनका समाधान प्रदान करने के लिए दार्शनिक विचारों का उपयोग करना है। यह समाज, संस्कृति, और व्यक्तिगत जीवन से जुड़े मुद्दों में दार्शनिक दृष्टिकोण को लागू करने का प्रयास करता है। लिव-इन रिलेशनशिप को इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण विषय बन जाता है, क्योंकि यह सामाजिक, मानसिक, और कानूनी स्तर पर कई प्रकार के सवालों और विचारों को उत्पन्न करता है।

लिव-इन रिलेशनशिप और दर्शन:

  1. स्वतंत्रता और अधिकार: लिव-इन रिलेशनशिप को स्वतंत्रता का प्रतीक माना जा सकता है। यह व्यक्ति को अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुसार संबंधों को चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। दर्शन में, स्वतंत्रता का महत्व है और यह मानव अस्तित्व और अधिकारों के मुद्दे से जुड़ा हुआ है। यदि हम इसे दार्शनिक दृष्टिकोण से देखें तो लिव-इन रिलेशनशिप को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वायत्तता की एक रूप में माना जा सकता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन साथी को चुनने और उस रिश्ते के नियमों को तय करने का अधिकार होता है।

  2. सामाजिक मान्यताएँ और परंपरा: भारतीय समाज में पारंपरिक रूप से विवाह को एक पवित्र और अनिवार्य बंधन माना जाता है। इस दृष्टिकोण से, लिव-इन रिलेशनशिप को अनैतिक या असामाजिक समझा जा सकता है। परंतु, आवेदनात्मक दर्शन यह सवाल उठाता है कि क्या परंपराएँ और सामाजिक मान्यताएँ हमेशा न्यायसंगत हैं? क्या समाज को प्रगति और बदलाव की दिशा में सोचने की आवश्यकता नहीं है? यह एक महत्वपूर्ण दार्शनिक प्रश्न है, जो सामाजिक नियमों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन पर विचार करने को प्रेरित करता है।

  3. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में आध्यात्मिक दृष्टिकोण अलग हो सकता है। कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण इसे गलत मानते हैं, क्योंकि इसे पारंपरिक विवाह के सिद्धांतों के खिलाफ माना जाता है। हालांकि, दर्शन में यह विचार किया जा सकता है कि आध्यात्मिकता और नैतिकता के क्या मानक हैं? क्या किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जीवनशैली उसकी आध्यात्मिक यात्रा को प्रभावित कर सकती है? इस संदर्भ में, लिव-इन रिलेशनशिप के अस्तित्व को आध्यात्मिक विकास और व्यक्तिगत जिम्मेदारी के नजरिए से देखा जा सकता है।

  4. सामाजिक और कानूनी चुनौती: लिव-इन रिलेशनशिप समाज में कई कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करता है। भारतीय कानून में अभी तक लिव-इन रिलेशनशिप को पूरी तरह से वैध नहीं माना गया है। हालांकि, भारतीय न्यायालय ने कुछ मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी है, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करते हुए। दर्शन के दृष्टिकोण से, यह सवाल उठता है कि समाज और कानून को बदलते हुए जीवन के नए रूपों को स्वीकार करने के लिए कितना लचीलापन होना चाहिए?