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प्रेमाश्रम बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में अत्याचारी जमीदारो, रिश्वतखोर राजकर्मचारियों, अन्यायी महाजनों और संघर्षरत किसानों की कथा है। इस अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास में शोषणरहित और सुखी समाज के आदर्श की स्थापना की गई है। प्रेमचंद ने समाधान के रूप में प्रेमाश्रम की कल्पना की है, जिस पर आलोचकों में विवाद है। पर इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रेमचंद की भाषा की सजीवता और काव्यात्मकता इस उपन्यास में अपने श्रेष्ठतम रूप में प्रगट हुई है।
मुंशी प्रेमचन्द
हिंदी के आधुनिक कथा शिल्पी कहे जाने वाले उर्फ धनपतराय का जन्म लमही के एक सामान्य परिवार में 31 जुलाई 1880 को हुआ था । उनके पिता का नाम अजायब राय और मां का नाम आनंदी देवी था । उनकी कलम से लिखी कहानियों ने सामाजिक विसंगतियों, शोषण के विरुद्ध जमकर लेखनी चलाई जिससे वे हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं केपाठकों के बीच लोकप्रिय हो गए । वेहिंदी के साथ-साथ उर्दू में धनपतराय के नाम से लिखा करते थे । उनके प्रमुख उपन्यास सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र हैं । उन्होंने तीन सौ के आसपास कहानियां लिखीं जो मानसरोवर के आठ खंडों में शामिल हैं । बांग्ला कथाकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उनको कथा सम्राट की संज्ञा दी थी । उनका 56 वर्ष की आयु में 8 अक्टूबर 1936 को निधन ।
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