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Theragatha

Author(s): Dr. Bhikshu Dharamratan
Publisher: Gautam Book Centre
Language: Hindi
Total Pages: 255
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 280.00
Unit price per

Description

Theragatha" (ठेरागाथा) बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो पलि भाषा में लिखा गया था। यह ग्रंथ बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों द्वारा अपनी जीवन यात्रा और ध्यान के अनुभवों को व्यक्त करने वाली कविताओं का संग्रह है। "Theragatha" का शाब्दिक अर्थ है "भिक्षु की गाथाएँ" (Thera = वृद्ध या अनुभवी भिक्षु, Gatha = गाथाएँ या कविताएँ)। इस ग्रंथ में 264 भिक्षुओं की गाथाएँ शामिल हैं, जो उनके ध्यान, साधना, और निर्वाण की प्राप्ति के अनुभवों का वर्णन करती हैं।

Theragatha के मुख्य बिंदु:

  1. भिक्षुओं की गाथाएँ: इसमें विभिन्न भिक्षुओं की आत्मकथाएँ हैं, जिन्होंने अपने जीवन में कठिनाइयाँ सहन करते हुए और ध्यान साधना के माध्यम से निर्वाण (मुक्ति) की प्राप्ति की। वे अपनी साधना के अनुभवों और प्राप्त आंतरिक शांति का वर्णन करते हैं।

  2. ध्यान और साधना की महिमा: भिक्षु अपनी गाथाओं के माध्यम से ध्यान की शक्ति, आत्म-ज्ञान और सत्य की प्राप्ति के बारे में बताते हैं। यह उनकी साधना की गहरी समझ और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रकट करता है।

  3. निर्वाण का मार्ग: कई गाथाएँ भिक्षुओं द्वारा निर्वाण की प्राप्ति के बाद की गई हैं, जिसमें उन्होंने यह अनुभव साझा किया कि किस प्रकार उन्होंने संसार के दुखों से मुक्ति पाई और शांति की स्थिति में पहुंचे।

  4. आध्यात्मिक संघर्ष और विजय: कई भिक्षुओं ने अपने जीवन में आत्मसंघर्ष, द्वंद्व और मानसिक विकारों का सामना किया और फिर उन्होंने उन्हें हराकर साधना में सफलता प्राप्त की।

Theragatha का महत्व:

  • यह ग्रंथ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है क्योंकि इसमें साधना, ध्यान, और जीवन के उच्चतम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष और समर्पण की गाथाएँ हैं।
  • यह बौद्ध साहित्य में एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में है और इसका अध्ययन साधकों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है।