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भांग का इतिहास और राजनीति
भांग का इतिहास:
भांग का इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों पुराना है। प्राचीन भारत में इसे धार्मिक और औषधीय उपयोग के रूप में देखा जाता था। भांग का जिक्र वेदों और आयुर्वेद ग्रंथों में मिलता है, जहां इसे मानसिक शांति और उपचार के लिए उपयोगी माना गया था।
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धार्मिक उपयोग: भांग का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष रूप से शिव पूजा में किया जाता था। भगवान शिव को भांग प्रिय होने के कारण इसे महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर अर्पित किया जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में भांग का उपयोग विभिन्न धार्मिक संस्कारों में होता आया है, खासकर शैव सम्प्रदाय में।
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औषधीय उपयोग: आयुर्वेद में भांग को विभिन्न शारीरिक और मानसिक रोगों के इलाज में इस्तेमाल करने की परंपरा रही है। इसे दर्द निवारण, मानसिक शांति, और पाचन में सहायता के लिए उपयोग किया जाता था। भांग के औषधीय गुणों के कारण इसे विशेष स्थान प्राप्त था।
भांग और राजनीति:
भांग का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य समय के साथ बदलता रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी ब्रिटिश शासकों ने भांग पर प्रतिबंध लगाया और इसे नियंत्रित करने के लिए कई कानून बनाए।
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ब्रिटिश शासन में भांग पर प्रतिबंध: 19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश सरकार ने भारत में भांग की खपत को नियंत्रित करने के लिए कई कानून बनाए। "अफीम और भांग कानून" (Opium and Hemp Act) के तहत भांग और अन्य मादक पदार्थों के व्यापार पर कड़ी निगरानी रखी गई थी। इस समय भांग का सेवन एक सामाजिक और धार्मिक अभ्यास था, लेकिन ब्रिटिश शासकों ने इसे एक नशे के रूप में चित्रित किया और उस पर कानून बनाकर उसका नियंत्रण किया।
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स्वतंत्रता संग्राम और समाजिक आंदोलन: महात्मा गांधी ने भारतीय समाज में शराब और अन्य नशे की वस्तुओं के खिलाफ आंदोलन चलाया था, लेकिन भांग को लेकर उनका दृष्टिकोण थोड़ा अलग था। गांधीजी ने भांग का सेवन औषधीय रूप से करने की बात कही, और यह भी माना कि इसे नियंत्रित और जिम्मेदारी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
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आजादी के बाद: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत में भांग की स्थिति धीरे-धीरे स्पष्ट हो गई। 1985 में भारत सरकार ने भांग, गांजा और अफीम जैसी मादक पदार्थों के सेवन को नियंत्रित करने के लिए "नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट" (NDPS Act) पारित किया। इसके तहत भांग के उत्पादन और बिक्री को नियंत्रित किया गया, हालांकि व्यक्तिगत उपयोग के लिए कुछ लचीले कानून भी बने।
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समकालीन राजनीति और कानून: आजकल, कुछ राज्यों में भांग के औद्योगिक उपयोग (जैसे, बीजों से खाद्य उत्पाद) और औषधीय उपयोग को अनुमति दी जाती है। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भांग का उत्पादन किया जाता है, जबकि अन्य स्थानों पर इसके सेवन पर प्रतिबंध जारी है। कई राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन भांग को वैध बनाने का समर्थन करते हैं, यह तर्क देते हुए कि यह आर्थिक विकास में योगदान कर सकता है और स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है।
निष्कर्ष: भांग का इतिहास और राजनीति भारतीय समाज में जटिल रूप से जुड़ा हुआ है। यह धार्मिक, सामाजिक, औषधीय, और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा है। भविष्य में इसे लेकर जो कानून और नीतियां बनेंगी, वे इसके सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभावों पर आधारित हो सकती हैं।