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अभिज्ञान शाकुन्तलम- Abhigyan Shakuntalam

अभिज्ञान शाकुन्तलम- Abhigyan Shakuntalam

Author(s): Dr. Balmukund Mishra and Dr. Shashi Kumar Singh
Publisher: Nirmal Publications
Language: Sanskrit & Hindi
Total Pages: 191
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 420.00
Unit price per

Description

अभिज्ञान शाकुन्तलम" (Abhigyan Shakuntalam) कालिदास द्वारा लिखी एक अत्यंत प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। यह नाटक भारतीय साहित्य का एक अद्भुत रत्न है और भारतीय नाटककला का श्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। यह नाटक शाकुन्तला और राजा दुष्यन्त की प्रेम कहानी पर आधारित है, जो महाभारत में भी उल्लेखित है।

नाटक का सार:

अभिज्ञान शाकुन्तलम का मुख्य कथानक शाकुन्तला और राजा दुष्यन्त के प्रेम संबंधों के इर्द-गिर्द घूमता है।

  • शाकुन्तला एक सुंदर और पतिव्रता कन्या है, जो ऋषि कण्व के आश्रम में पली-बढ़ी है। वह ऋषि विश्रामित्र और मेनका की पुत्री है, जो एक नंदिनी (नम्र और शुद्ध) के रूप में जानी जाती है।

  • एक दिन, राजा दुष्यन्त शिकार करते हुए आश्रम में आते हैं और शाकुन्तला से मिलते हैं। दोनों के बीच प्रेम होता है, और वे एक-दूसरे से शादी करने का निर्णय लेते हैं। राजा दुष्यन्त शाकुन्तला को एक अंगूठी उपहार स्वरूप देते हैं और वचन देते हैं कि वह जल्द ही उसे लेने के लिए वापस आएंगे।

  • लेकिन एक ऋषि का शाप शाकुन्तला और राजा दुष्यन्त के प्रेम में विघ्न डालता है। ऋषि दुर्वासा शाप देते हैं कि राजा दुष्यन्त शाकुन्तला को भूल जाएंगे। और जब शाकुन्तला राजा से मिलती है और उन्हें अपनी पहचान और विवाह की याद दिलाती है, तो राजा उसे पहचान नहीं पाते और उसे अपमानित करते हैं।

  • इस समय शाकुन्तला को दुःख होता है और वह ऋषि दुर्वासा के शाप से प्रभावित हो जाती है। वह दुखी होकर आश्रम लौट जाती है और अंगूठी खो जाती है, जो राजा दुष्यन्त ने उसे दी थी।

  • अंततः, शाकुन्तला और दुष्यन्त का पुनर्मिलन होता है, जब शाकुन्तला के खोए हुए अंगूठी को नदी से खोजा जाता है और राजा को उनकी भूल का अहसास होता है। फिर दोनों की मिलन की कहानी एक सुखमय अंत पाती है।

मुख्य पात्र:

  1. शाकुन्तला: नाटक की नायिका, जो एक सुंदर, संतुष्ट और उच्च आदर्श वाली महिला है। उसका जीवन ब्राह्मणों के आश्रम में व्यतीत हुआ है, लेकिन राजा दुष्यन्त से प्रेम के बाद वह कर्तव्य और रिश्तों की नई परिभाषाओं से रूबरू होती है।

  2. राजा दुष्यन्त: नाटक के नायक, जो शाकुन्तला से प्रेम करते हैं और एक शाप के कारण उन्हें भूल जाते हैं। वह एक न्यायप्रिय और वीर राजा होते हुए भी मानव भावनाओं के जाल में फंस जाते हैं।

  3. ऋषि कण्व: शाकुन्तला के पालनकर्ता, जो उसे आश्रम में पालते हैं और उसे सही मार्गदर्शन देते हैं।

  4. ऋषि दुर्वासा: एक कठोर और क्रोधित ऋषि, जिन्होंने शाकुन्तला और दुष्यन्त को शाप दिया कि वे एक-दूसरे को भूल जाएंगे।

प्रमुख विषय:

  1. प्रेम और अलगाव: शाकुन्तला और दुष्यन्त के बीच प्रेम और उनके मिलन के रास्ते में आनेवाले भावनात्मक उतार-चढ़ाव को इस नाटक में खूबसूरती से दर्शाया गया है।

  2. नियति और भाग्य: नाटक में यह भी दर्शाया गया है कि कैसे नियति और भाग्य इंसान के जीवन की घटनाओं को आकार देते हैं। दुष्यन्त की भूल और शाकुन्तला का कष्ट, अंततः उनके मिलन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

  3. देवताओं की भूमिका: इस नाटक में देवताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, जो मनुष्यों के जीवन में हस्तक्षेप करते हैं और उनके जीवन को दिशा देते हैं।

  4. पहचान और पुनर्मिलन: इस नाटक में पहचान का विषय भी अहम है, जहाँ अंगूठी के खो जाने और उसे फिर से प्राप्त करने के बाद ही राजा दुष्यन्त को शाकुन्तला की याद आती है और उनका मिलन होता है।

साहित्यिक शैली:

कालिदास की काव्यशैली अत्यंत सजीव और प्रभावशाली है। उनके शेर और श्लोक प्रकृति, प्रेम, और भावनाओं की गहरी समझ से भरे हुए होते हैं। नाटक के संवाद, भव्यता और वर्णन में एक दिव्य शांति और रसता (अर्थात् सौंदर्य और शांति) देखने को मिलती है।

नाटक का प्रभाव:

अभिज्ञान शाकुन्तलम न केवल भारतीय साहित्य का महान उदाहरण है, बल्कि यह पश्चिमी साहित्य और संस्कृति में भी प्रभावी रहा है। इसका अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है और यह विभिन्न संस्कृतियों में मंचन के लिए एक प्रेरणा बना है। प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि जॉर्ज विलियम्स और अर्थर राइडर ने इस नाटक का अनुवाद किया था, जिसे विश्वभर में सराहा गया।