
युक्तिकल्पतरु" श्री भोजराज द्वारा रचित एक प्रमुख काव्यग्रंथ है जो मुख्य रूप से भारतीय तर्कशास्त्र और दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। श्री भोजराज एक प्रख्यात भारतीय आचार्य और विद्वान थे, जिनका योगदान भारतीय शास्त्रों में अत्यधिक था। उन्होंने इस ग्रंथ में तर्कशास्त्र (logic) और विचारधारा के विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया है।
"युक्तिकल्पतरु" का नाम स्वयं में इसका उद्देश्य स्पष्ट करता है – "युक्ति" का अर्थ होता है तर्क, और "कल्पतरु" का अर्थ है कल्पवृक्ष, यानी एक ऐसा वृक्ष जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करता है। इस ग्रंथ का उद्देश्य यह है कि तर्क के माध्यम से मनुष्य को सत्य, धर्म और न्याय की सही समझ मिल सके।
इस ग्रंथ में श्री भोजराज ने विभिन्न धार्मिक और तात्त्विक मतों का विश्लेषण किया है और तर्क के आधार पर सत्य की खोज की है। यह ग्रंथ विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो तर्कशास्त्र और दर्शन के गहरे अध्ययन में रुचि रखते हैं।
"युक्तिकल्पतरु" में कुछ प्रमुख विचारधाराएँ और विचारधारा-विश्लेषण की तकनीकें दी गई हैं, जिनका उपयोग तर्क और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है। यह काव्यग्रंथ भारतीय बौद्धिक परंपरा का एक अनमोल रत्न माना जाता है।
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