
साहित्यदर्पण एक प्रसिद्ध संस्कृत काव्य-रचनात्मक ग्रंथ है, जिसे राजशेखर ने लिखा है। यह ग्रंथ साहित्य और कला के सिद्धांतों पर आधारित है और भारतीय काव्यशास्त्र (literary theory) के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक माना जाता है। "साहित्यदर्पण" का अर्थ है "साहित्य का दर्पण" (Mirror of Literature), जो साहित्य और कला की समृद्धि और गुणों को दर्शाने का काम करता है।
काव्यशास्त्र और काव्यविज्ञान:
"साहित्यदर्पण" में काव्यशास्त्र से संबंधित कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन किया गया है, जैसे काव्य के लक्षण, रस, अलंकार, वियोग आदि।
इसे विशेष रूप से काव्यशास्त्र (Theory of Literature) के सिद्धांतों का व्याख्यायन करने वाला ग्रंथ माना जाता है, जिसमें काव्य के विभिन्न रूपों का स्पष्ट विवेचन किया गया है।
रस और अलंकार:
"साहित्यदर्पण" में रस (aesthetic experience) और अलंकार (figure of speech) पर गहरा ध्यान दिया गया है। लेखक ने काव्य के रसों, उनके प्रभाव, और काव्य में प्रयुक्त अलंकारों के महत्व को भी समझाया है।
साहित्य के उद्देश्य:
यह ग्रंथ साहित्य के मुख्य उद्देश्य को स्पष्ट करता है, जैसे सुख (Pleasure) और उद्धार (Elevation of the soul). साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह मानसिक और नैतिक उन्नति का भी साधन है।
काव्य की परिभाषा:
राजशेखर ने काव्य की परिभाषा दी और बताया कि काव्य केवल शब्दों की सुंदरता नहीं, बल्कि भावनाओं और विचारों का सुंदरतम रूप में व्यक्त करना है। उन्होंने काव्य के वास्तविक उद्देश्य को समझाया और इसे समाज और संस्कृति में एक प्रेरक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया।
काव्य की श्रेणियाँ:
"साहित्यदर्पण" में काव्य के प्रकारों का भी विवरण है, जैसे महाकाव्य (epic), काव्यप्रवृद्धि (lyrical poetry), नाट्य (drama), और नटी (comedy/tragedy) आदि।
"साहित्यदर्पण" भारतीय साहित्यशास्त्र के विकास में एक मील का पत्थर है। यह न केवल काव्य के सिद्धांतों की व्याख्या करता है, बल्कि यह भारतीय साहित्य की समृद्ध परंपरा और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को भी प्रस्तुत करता है। इसके सिद्धांतों ने भारतीय काव्यशास्त्र और साहित्य की आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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