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2 शिखंडीओं का जीवन चरित्र एवं उनका काल इतिहास के दर्पण में"
शिखंडी भारतीय महाकाव्य महाभारत का एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। हालांकि, महाभारत में शिखंडी का एक अद्वितीय स्थान है, लेकिन वह दो व्यक्तियों को संदर्भित कर सकते हैं, जो विभिन्न समयों में अलग-अलग परिस्थितियों में थे। यहाँ हम दो प्रमुख शिखंडी व्यक्तियों का जीवनचरित्र और उनके काल को देखेंगे:
महाभारत में शिखंडी का पहला संदर्भ अम्बा नामक महिला से जुड़ा है। अम्बा को भीष्म पितामह द्वारा स्वेच्छा से हर लिया गया था, जो उसे उनके भाई राजा शाल्व से छीनकर हर ले गए थे। अम्बा ने यह स्थिति स्वीकार नहीं की और उसने भीष्म से बदला लेने की कसम खाई। वह तपस्या करने के बाद भगवान शिव से वरदान प्राप्त करती हैं कि वह पुरुष के रूप में जन्म लेंगी और भीष्म का वध करेंगी।
इस वरदान के अनुसार, अम्बा का पुनर्जन्म शिखंडी के रूप में हुआ। शिखंडी पुरुष रूप में जन्मे थे, लेकिन उनका जीवन अम्बा की भावना से प्रेरित था। महाभारत के युद्ध में शिखंडी ने भीष्म पितामह को पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भीष्म ने यह स्वीकार किया था कि वह शिखंडी से नहीं लड़ेगा, क्योंकि वह अम्बा का पुनर्जन्म था। इस कारण शिखंडी ने भीष्म को मृत्यु के कगार तक पहुंचाया।
महाभारत में एक और शिखंडी हैं जो द्रुपद के पुत्र थे। द्रुपद, पांडवों के समकालीन राजा, ने शिखंडी को अपने पुत्र के रूप में पालन किया। शिखंडी एक वीर और शक्तिशाली योद्धा थे। युद्ध के दौरान वह पांडवों के लिए एक मजबूत सहायक साबित हुए और उन्होंने कौरवों के खिलाफ संघर्ष किया।
शिखंडी का जीवन उस समय के समाज और राजनीति की वास्तविकताओं को दर्शाता है। उनका युद्ध कौशल और राजनीतिक समझ महाभारत के युद्ध के परिणामों में महत्वपूर्ण था।
शिखंडी की भूमिका महाभारत के युद्ध में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। महाभारत के युद्ध की पूरी कहानी को देखें तो शिखंडी का योगदान महत्वपूर्ण था, क्योंकि वह उस समय के सामाजिक और राजनीतिक बदलावों का प्रतिनिधित्व करते थे। उनका अस्तित्व उन दोनों शिखंडी पात्रों के लिए एक प्रतीक बन गया, जो स्वयं के उद्देश्यों के लिए संघर्ष करते थे और समाज के नैतिकता से परे जाकर अपना उद्देश्य प्राप्त करने के लिए संघर्षरत थे।
शिखंडी का इतिहास महाभारत के युद्ध के दर्पण में एक प्रेरणा और यथार्थवादी दृष्टिकोण के रूप में स्थापित हुआ। उनकी भूमिका ने यह भी दिखाया कि कभी-कभी समाज और इतिहास में लड़ाई सिर्फ बाहरी युद्ध नहीं, बल्कि आंतरिक संघर्ष और व्यक्तिगत पहचान का भी सवाल बन जाती है।
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