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श्री रमण महर्षि का उपदेश "अपनी सहज अवस्था में रहिये" अत्यंत सरल लेकिन गहरे अर्थ वाला है। उन्होंने ध्यान और आत्मज्ञान के लिए जो मार्ग बताया, वह हमें हमारी स्वाभाविक और शुद्ध अवस्था को पहचानने के लिए प्रेरित करता है।
महर्षि का यह उपदेश यह बताता है कि हम अपने वास्तविक स्वरूप, जिसे "आत्मा" या "स्वयं" कहा जाता है, के साथ संपर्क बनाए रखें। हमारी सहज अवस्था वह अवस्था है, जिसमें हम अपने सच्चे स्वरूप से जुड़े होते हैं, बिना किसी भ्रम, वासना, या मानसिक विकारों के। यह अवस्था शांति, संतुलन और आत्मज्ञान से भरी होती है।
महर्षि रमण का यह भी कहना था कि हमें अपने विचारों और इन्द्रियों से उपर उठकर उस गहरे, शांत, और अचेतन अनुभव की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो हमारे भीतर हमेशा विद्यमान है। "मैं कौन हूँ?" यह उनका प्रसिद्ध प्रश्न था, जो आत्म-चिंतन की दिशा में पहला कदम है।
अर्थात, हम जितना अधिक अपनी वास्तविकता को जानने का प्रयास करते हैं, उतना ही हम अपनी सहज अवस्था में रहते हैं। यह अवस्था किसी बाहरी साधना या प्रयास से नहीं मिलती, बल्कि यह केवल आत्म-निरीक्षण और विचारों के शांत होने से प्राप्त होती है।
श्री रमण महर्षि ने यह स्पष्ट किया कि हमारी असल पहचान "मैं" के अहंकार के पार है, और हमें अपने भीतर की शांति और अस्तित्व का अनुभव करने के लिए बस इस अहंकार और बाहरी जगत के भ्रमों से बाहर निकलने की आवश्यकता है।
इस उपदेश के माध्यम से उन्होंने हमें सिखाया कि आत्म-साक्षात्कार और शांति प्राप्त करने के लिए हमें किसी बाहरी योग या साधना की आवश्यकता नहीं है; हमें बस अपनी सहज अवस्था, जो पहले से हमारे भीतर है, को पहचानने और उसमें निवास करने की आवश्यकता है।
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