VyakaranaChandrodaya pancham Khand (Shiksha, Sangya,Paribhasha, Samhita): व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड

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  • Book Name VyakaranaChandrodaya pancham Khand (Shiksha, Sangya,Paribhasha, Samhita): व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड
  • Author Shri Charudev Shashtri
  • Language, Pages Sanskrit & Hindi, 630 Pgs. (PB)
  • Last Updated 2024 / 10 / 15
  • ISBN 9789359667515

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VyakaranaChandrodaya pancham Khand (Shiksha, Sangya,Paribhasha, Samhita): व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड
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व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड" (Vyakarana Chandrodaya Pancham Khand) चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण पर आधारित एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस पंचम खंड में शिक्षा (Shiksha), संग्या (Sangya), परिभाषा (Paribhasha), और संहिता (Samhita) जैसे संस्कृत व्याकरण के मौलिक और आधारभूत विषयों पर गहरे विस्तार से चर्चा की गई है।

व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड का उद्देश्य:

पंचम खंड का उद्देश्य संस्कृत व्याकरण के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट रूप से समझाना और छात्रों, शोधकर्ताओं, और संस्कृत प्रेमियों को व्याकरण के गहरे सिद्धांतों से परिचित कराना है। यह खंड विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी है, जो संस्कृत भाषा की संरचना और उसकी नियमावली को सटीक रूप से समझने की इच्छा रखते हैं।

व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड के मुख्य विषय:

1. शिक्षा (Shiksha):

  • शिक्षा संस्कृत के उच्चारण और ध्वनि विज्ञान से संबंधित है। यह विशेष रूप से संस्कृत ध्वनियों के प्रयोग और उच्चारण के नियमों को स्पष्ट करता है।
  • इसमें अक्षरों की ध्वनि, स्वरों और व्यंजनों की विशेषताएँ, संधि, और वर्णों का स्वरूप आदि पर विस्तार से चर्चा की जाती है।
  • शिक्षा के सिद्धांतों का पालन करके कोई भी व्यक्ति संस्कृत के शब्दों और वाक्यांशों को सही ढंग से बोल सकता है और लिख सकता है।

2. संग्या (Sangya):

  • संग्या का अर्थ है नाम या संज्ञा। यह उस शब्द या तत्व को संदर्भित करता है, जो किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु या विचार का नाम है।
  • संग्या के अंतर्गत व्यक्तिवाचक संग्या, जातिवाचक संग्या, समूहवाचक संग्या, आदि प्रकारों की व्याख्या की जाती है।
  • यह भी बताया जाता है कि संग्या का उपयोग किस प्रकार से वाक्य में किया जाता है, ताकि उसका अर्थ स्पष्ट हो सके और संवाद में सुसंगति बनी रहे।

3. परिभाषा (Paribhasha):

  • परिभाषा का अर्थ है "परिभाषा" या "परिभाषिक शब्दार्थ"। यह उन नियमों और सिद्धांतों की व्याख्या है, जो किसी विशेष व्याकरणिक तत्व के अर्थ और उपयोग को स्पष्ट करते हैं।
  • इस खंड में संस्कृत के व्याकरणिक परिभाषाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है, जैसे विभक्ति, तद्धित, सन्धि आदि की परिभाषाएँ।
  • परिभाषा के माध्यम से छात्र संस्कृत के विभिन्न तत्वों और उनके आपसी संबंधों को समझ सकते हैं।

4. संहिता (Samhita):

  • संहिता का अर्थ है संग्रह या संयोजन। यह शब्दों और वाक्यांशों के समुचित उपयोग और वाक्य निर्माण के नियम पर केंद्रित है।
  • इस खंड में संस्कृत के शब्दों की संहिता और उनका संयोजन कैसे होता है, इस पर प्रकाश डाला गया है। इसमें वाक्य के सही निर्माण के लिए आवश्यक सिद्धांतों और नियमों का विवरण मिलता है।
  • संहिता में वाक्य रचना, शब्दों के आपसी संबंध, और वाक्य के तत्वों की संहिता से संवाद को स्पष्ट और सटीक बनाने के तरीकों की चर्चा की जाती है।

व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड की विशेषताएँ:

  1. व्याकरण के आधारभूत सिद्धांत:

    • इस खंड में शिक्षा, संग्या, परिभाषा, और संहिता के सिद्धांतों को सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन सिद्धांतों के माध्यम से छात्रों को संस्कृत व्याकरण के जटिल पहलुओं को समझने में मदद मिलती है।
  2. व्याकरण के सूक्ष्म विवरण:

    • शिक्षा से लेकर संहिता तक, हर विषय पर विस्तृत और सूक्ष्म विवरण दिया गया है, जिससे छात्रों को संस्कृत की शब्द संरचना और वाक्य निर्माण के नियमों की गहरी समझ प्राप्त होती है।
  3. संस्कृत भाषा का सटीक उच्चारण:

    • इस खंड में शिक्षा के माध्यम से संस्कृत के सही उच्चारण पर ध्यान दिया गया है, जिससे पाठक और विद्यार्थी संस्कृत शब्दों का सही उच्चारण कर सकते हैं और संवाद में अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
  4. संज्ञा और परिभाषा का अध्ययन:

    • संग्या और परिभाषा पर दी गई जानकारी छात्रों को भाषा के बुनियादी तत्वों को समझने में मदद करती है, जिससे वे संस्कृत के जटिल वाक्य और शब्दों को सटीक रूप से पहचान सकते हैं।
  5. संहिता के माध्यम से वाक्य निर्माण:

    • संहिता के अध्ययन से छात्र वाक्य निर्माण के सटीक सिद्धांत समझ सकते हैं और संस्कृत में प्रभावी संवाद स्थापित करने में सक्षम हो सकते हैं। यह संस्कृत के साहित्यिक और दार्शनिक ग्रंथों को समझने के लिए भी आवश्यक है।

निष्कर्ष:

"व्याकरणचन्द्रोदय पंचम खण्ड" चारुदेव शास्त्री द्वारा रचित एक अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो संस्कृत व्याकरण के शिक्षा, संग्या, परिभाषा, और संहिता जैसे बुनियादी विषयों पर विस्तृत और स्पष्ट रूप में प्रकाश डालता है।

यह पुस्तक विशेष रूप से उन छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए उपयुक्त है जो संस्कृत की गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं और संस्कृत की सही व्याकरणिक संरचना को समझना चाहते हैं। पंचम खंड संस्कृत की संरचना और शब्द प्रयोग की समग्रता को समझने में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है।

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