Hindu Jati Ka Utthan Aur Patan- हिन्दू जाति का उत्थान और पतन

Rs. 300.00
  • Book Name Hindu Jati Ka Utthan Aur Patan- हिन्दू जाति का उत्थान और पतन
  • Author Rajanikant Shastri
  • Language, Pages Hindi 320 Pgs. (PB)
  • Last Updated 2024 / 11 / 28
  • ISBN 9789395593113
Publisher:

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Hindu Jati Ka Utthan Aur Patan- हिन्दू जाति का उत्थान और पतन
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हिन्दू जाति का उत्थान और पतन एक जटिल और लंबी प्रक्रिया है, जिसे विभिन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, और राजनीतिक कारणों से समझा जा सकता है। यह प्रक्रिया विभिन्न चरणों में विकसित हुई है, जो प्राचीन समय से लेकर मध्यकाल और आधुनिक काल तक फैली हुई है।

1. प्राचीन काल (Vedic Period) - उत्थान का आरंभ:

हिन्दू जाति का उत्थान प्राचीन काल से ही शुरू हुआ था, जब वैदिक संस्कृति और धार्मिक जीवन का निर्माण हुआ। वेदों के माध्यम से धर्म, दर्शन, और समाज के बुनियादी सिद्धांतों की स्थापना हुई। इस समय हिन्दू समाज में एक सुव्यवस्थित व्यवस्था थी, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र (वर्ण व्यवस्था) का स्थान था। यह व्यवस्था समाज के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने का प्रयास करती थी।

  • धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास: वैदिक युग में हिन्दू धर्म का विस्तार हुआ, जिसमें कर्म, योग, ध्यान, और आस्तिकता के सिद्धांतों का समावेश हुआ। समाज में विद्वान ब्राह्मणों की उच्च मान्यता थी और राजा-महाराजा क्षत्रियों के द्वारा साम्राज्य की स्थापना की जाती थी। व्यापार और कृषि की समृद्धि से समाज में आर्थिक और सांस्कृतिक विकास हुआ।

2. मध्यकाल (Medieval Period) - पतन की शुरुआत:

मध्यकाल में हिन्दू जाति के उत्थान की गति में रुकावट आई, विशेष रूप से मुस्लिम आक्रमणकारियों के आक्रमण और मुस्लिम शासकों के शासन के कारण।

  • इस्लामी आक्रमण और साम्राज्य: मुस्लिम आक्रमणों और दिल्ली सल्तनत, मुग़ल साम्राज्य जैसे मुस्लिम साम्राज्यों के दौरान हिन्दू समाज को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। धर्म परिवर्तन, सामाजिक असमानताएं और हिन्दू संस्कृति पर हमले से समाज में विघटन हुआ।

  • जातिवाद और सांस्कृतिक संकट: मध्यकाल में जातिवाद का विस्तार हुआ, और शूद्रों एवं दलितों पर दबाव बढ़ा। हिन्दू समाज में भक्ति आंदोलन जैसे सुधारक आंदोलनों ने धर्म और समाज की पवित्रता की ओर ध्यान आकर्षित किया, लेकिन फिर भी जातिवाद और सामाजिक असमानताएं बनी रहीं।

3. आधुनिक काल (Modern Period) - ब्रिटिश शासन और सुधार आंदोलन:

ब्रिटिश शासन के दौरान हिन्दू समाज में और भी अधिक असमानताएं पैदा हुईं, खासकर जब ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज की जड़ों को प्रभावित किया। हालांकि, इस दौर में कई सुधारक आंदोलन भी हुए, जिन्होंने हिन्दू समाज के उत्थान की दिशा में काम किया।

  • ब्रिटिश प्रभाव: ब्रिटिश साम्राज्य ने हिन्दू समाज में औद्योगिकीकरण, शिक्षा का प्रसार और आधुनिकता का आयाम लाया, लेकिन इसके साथ-साथ हिन्दू समाज की परंपरागत संरचनाओं को भी कमजोर किया। सामंती व्यवस्था और सामाजिक विभाजन में और वृद्धि हुई।

  • सुधारक आंदोलन: इस समय स्वामी विवेकानंद, राजा राममोहन राय, महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे महान व्यक्तित्वों ने हिन्दू समाज की सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण की दिशा में काम किया। उन्होंने जातिवाद, बाल विवाह, सती प्रथा और महिला शिक्षा के खिलाफ संघर्ष किया।

4. आधुनिक भारत - जाति व्यवस्था का बदलता रूप:

आजकल, हिन्दू जाति के उत्थान के प्रयासों में न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार की आवश्यकता महसूस होती है, बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक सुधारों की भी जरूरत है। आधुनिक समाज में, हिन्दू जाति के भीतर उत्पन्न जातिवाद, असमानता, और भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। भारतीय संविधान ने समानता का अधिकार दिया है, लेकिन जातिवाद का मुद्दा अभी भी समाज में विद्यमान है।

  • जातिवाद और समावेशिता: आजादी के बाद, विशेष रूप से आरक्षण और सामाजिक न्याय की नीतियों के माध्यम से सरकार ने पिछड़े वर्गों के उत्थान की कोशिश की है। हालांकि, इस व्यवस्था के साथ कई सामाजिक संघर्ष और विरोध भी उत्पन्न हुए हैं।

5. आज का हिन्दू समाज:

आज हिन्दू समाज में उत्थान की दिशा में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं, जैसे कि शिक्षा में सुधार, महिला सशक्तिकरण, और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में कदम। हालांकि, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता जैसी समस्याएं अब भी समाज में मौजूद हैं।

  • आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्थान: हिन्दू धर्म का वैश्विक स्तर पर विस्तार हो रहा है, और अनेक लोग हिन्दू धर्म के दर्शन और योग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। साथ ही, समाज के विभिन्न वर्गों को समान अवसर देने के प्रयास किए जा रहे हैं।

निष्कर्ष:

हिन्दू जाति का उत्थान और पतन समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहा है। यह उत्थान और पतन, समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में परिभाषित होता है। जबकि हिन्दू समाज ने समय-समय पर संकटों का सामना किया है, साथ ही उसमें सुधार और सशक्तिकरण की दिशा में निरंतर प्रयास भी किए गए हैं।

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