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वैद्य समाज तथा आयुर्वेद प्रेमी-जनता के सम्मुख 'सिद्धयोग संग्रह' उपस्थित करते हुए आज मुझे अवर्णनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। यह अनुभवसिद्ध योगों का संग्रह है और आयुर्वेदमार्त्तण्ड वैद्य यादव त्रिकमजी आचार्य जैसे कृतविद्य तथा सिद्धहस्त वैद्य द्वारा पचास वर्ष के अनुभव के पश्चात् लिखा गया है- इतना ही इस ग्रन्थ की उपयोगिता तथा उपादेयता के बारे में पर्याप्त है।
नवीन चिकित्सकों को चिकित्साकार्य प्रारम्भ करते हुए निश्चित फलदायी योगों का ज्ञान प्राय: न होने से बहुत कष्ट होता है । ऐसे वैद्यों के लिये यह ग्रन्थ अनुपम रत्नमञ्जूषा सिद्ध होगा। जिन्हें चिकित्साकार्य करते हुए पर्याप्त समय हो चुका है, उन्हें भी इस ग्रन्थ से अपूर्व लाभ होगा। ग्रन्थ के लेखक वैध यादवजी महाराज की विद्वत्ता और अनुभव से आयुर्वेदजगत् सुपरिचित हैं। 18-20वर्ष की उम्र से आपने आयुर्वेद के प्राचीन हस्तलिखित तथा अप्राप्य ग्रन्थों के उद्धार का कार्य प्रारम्भ कर दिया था । आयुर्वेदीय ग्रन्थमाला द्वारा आपने कई ग्रन्थरत्न प्रकाशित किये हैं। निर्णयसागर प्रेस से प्रकाशित होनेवाले अनेक आयुर्वेदीय ग्रन्थों का सम्पादन आपने किया है। हाल में आपने पाठयक्रमोपयोगी 'द्रथगुणविज्ञान तीन भागों में तथा 'रसामृत' नामक ग्रन्थ तैयार करके प्रसिद्ध किया है । इसके सिवाय आपने न जाने कितने विद्वान् लेखकों तथा प्रकाशकों को प्रेरित और प्रोत्साहित कर प्राचीन ग्रन्धों का प्रकाशन, प्राचीन ग्रन्थों की व्याख्या तथा आयुर्वेदोपयोगी नूतन विषयों पर ग्रथों का निर्माण और प्रकाशन कराया है।
अनुभव के विषय में इतना ही कहना पर्याप्त है कि आप ५० वर्ष से मुम्बई जैसी राजनगरी में सतत् चिकित्साकार्य कर रहैं हैं ओर यश का उपार्जन करते हुए भारत के प्रथम कोटि के वैद्यों में गिने जाते हैं। भारत के सब प्राप्तों के सभी कक्षाओं के अनेकानेक वैद्यराजों के आप सदा सम्पर्क में रहते हैं और इस प्रकार अनेक अनुभवों को भी गात करने और उन्हें स्वयं भी अनुभव में लाने का आपको सदा सुयोग बना रहता है। यूनानी वैद्यक का भी आपने तीन वर्ष गुरु मूख से अध्ययन किया है, जिसकी छाप आप इस क्रय में यत्र-तत्र पायेंगे।
इसके अतिरिक्त आपने अपने औषधालय में तथा मुम्बई की आयुर्वेदीय पाठशाला में आयुर्वेद का सानुभव शिक्षण देकर सैकड़ों शिष्य तैयार किये हैं जो आपकी यश पताका को और मी उज्जवल कर रहैं हैं।
इतने परिचय से समझा जा सकता है कि यह ग्रन्थ चिकित्सक-समाज को कितना उपयोगीहो सकेगा। यह उपयोगिता और भी बढ़ जाती है; जब हम देखते हैं कि ग्रन्थ अत्यन्त सरल और सुबोध भाषा में संक्षेपत: लिखा गया है तथा इसमें दिये योग भी ऐसे हैं जिन्हें बनाना विशेष कठिन नहीं है।
वाचकों के हाथ में ऐसा उत्तम ग्रन्थ अर्पित करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष तथा अभिमान होता है। पूज्य गुरु यादवजी महाराज का मैं अत्यन्त अनुगृहीत हूँ कि उन्होंने मुझे इस ग्रन्थ के प्रकाशन की आज्ञा दी; तथा आयुर्वेद की यह महती सेवा करने का अवसर दिया।
लेखक का निवेदन
आयुर्वेद के चिकित्सालयों में एक-एक रोग के लिये अनेक योग लिखे हुए हैं । उन सब योगों का बनाना और रोगियों पर प्रयोग कर के उनका अनुभव करना साधनसम्पत्र वैद्यों के लिये भी कटिन-सा हैं। ग्रन्थकारों में तत्तद्रोगों में उनका अनुभव कर के ही वे योग लिखे होंगे । तथापि उनमें कुछ योग ऐसे हैं जो विशेष गुणकारक हैं, और भिन्न-भिन्न प्राप्तों के वैद्यों में विशेषरूप से प्रचलित हैं। चिकित्साकार्य को प्रारम्भ करने वाले और जिन्होंने विशेष अनुभव प्राप्त नहीं किया है या किसी अनुभवी गुरु की सेवा में रहकर चिकित्साकार्य नहीं देखा है उन नवीन वैद्यों के लिये शास्त्रोक्त असंख्य योगों में से कौन-कौन से योग बनाने चाहिये, यह कठिन समस्या हो जाती हैं। ऐसे वैद्यों को अपने प्रारम्भिक चिकित्साकार्य में मार्गदर्शक हो, इस आशा से मैंने अपने 50 वर्षो के चिकित्सा कार्य में जिन योगों को विशेषरूप से फलप्रद पाया उनका संग्रह कर के यह 'सिद्धयोग संग्रह' नामक ग्रन्थ तैयार किया है। इनमें अधिकांश योग भित्र-भित्र प्राप्तों के वैद्यों में प्रचलित शास्त्रीय योग हैं और कुछ अन्य वैद्यों से प्राप्त और स्वत: अनुभव किये हुए हैं। कुछ शास्रीय योगों में मैंने अपने अनुभव से द्रव्यों में कुछ परिवर्तन भी किया है । उनके मूल पाठ में तदनुकूल परिवर्तन कर दिया है और नीचे किञ्चित्परिवार्तित ऐसा लिख भी दिया है। शास्त्रीय योगों के गुणपाठ में उस योग के जो गुण-विशेष अनुभव में आए' वे ही रखकर अन्य हटा दिये हैं । भाषानुवाद मैं निर्माणविधि, मात्रा, अनुपान आदि विस्तृत और स्पष्ट भाषा में लिखा है ताकि नवीन वैद्य भी योगों को सुगमता से बना सकें और उनका प्रयोग कर सकें। हिन्दी मेरी जन्मभाषा न होने के कारण इस क्रूस में भाषा सम्बन्धी अनेक त्रुटियाँ रहना संभव है। आशा है कि पाठक उनको सुधार कर पढ़गे और इस के लिये मुझे क्षमा करेंगे । यह ग्रन्थ गुजरात और महाराष्ट्र के वैद्यों को भी उपयोगी हो, इसलिये इस ग्रन्थ में प्रयुक्त औषधियों के हिन्दी नामों के साथ उनके गुजराती और मराठी पर्यायों की सूची भी आरम्भ में दी गई हैं ।इस ग्रन्थ को देखने के पहिले यदि मेरे लिखे हुए द्रजगुणविज्ञानउत्तरार्ध के 'परिभाषाखण्ड' 'नामक प्रथम खण्ड को देख लें तो उनको योगों के निर्माण में विशेष सहायता होगी। धातु, उपधातु, रल आदि का शोधन-मारण तथा विष उपविष आदि का शोधन इस ग्रन्थ के परिशिष्ट में लिखा है। इस विषय में जिनको विशेष जिज्ञासा हो वे मेरा लिखा हुआ 'रसामृत'ग्रन्थ देखें । कागज आदि की अति महँगाई के समय में इस ग्रन्थ को अच्छे कागज पर छपवाकप्रकाशित किया इसलिए मैं अपने प्रिय शिष्य वैद्यराज रामनारायणजी संचालक-''श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन लि०'' को अनेक धन्यवाद देता हूँ । इस ग्रन्थ के दूफ देखने, योगों की वर्णानुक्र-मणिका और शुद्धिपत्र बनाने आदि में मेरे प्रिय शिष्य श्री रणजितराय देसाई आयुर्वेदालङ्कार (वाइस प्रिन्सिपल ओच्छव लाल नाझर आयुर्वेदिक कालेज, सूरत तथा शरीर-क्रिया-वितान, आयुर्वेदीय पदार्थविज्ञान आदि क्रयों के लेखक) ने बहुत परिश्रम किया है, अत: उनको भी धन्यवाद देता हूँ।
पंचम संस्करण
सिद्धयोग संग्रह का यह पंचम संस्करण आयुर्वेद-जगत् को देते हुए हमें सन्तोष हो रहा है । इस संस्करण की भी पूर्व संस्करणों के समान ५००० (पाँच हजार) प्रतियाँ छापी हैं। इसके प्रणेता पूज्यपाद यादवजी महाराज आज संसार में नहीं हैं । उनको खोकर हम और सारा आयुर्वेद-जगत् शास्त्रीय दृष्टि से प्रकाशहीन सा हो गया है, इसलिये हम सब समानभाव से दुखी हैं।
वे चले गये, हमारा बहुत कुछ लेकर- और हमको बहुत कुछ देकर । हमारा ज्योतिष्मान् आशादीप वे ले गए और हमें कुछ ऐसी प्रकाश-मणियाँ वे दे गए हैं, जिनके सहारे-यदि उन्हें जीवन की गाँठों में बाँधे रहें तो-हम अन्धकाराच्छादित वर्तमान के कष्टकार्कीण पथ को पार करके, भविष्य के भव्यालोक के दर्शन कर सकेंगे।
जो कुछ हमारा वे ले गए, वह एक दिन जाने को ही था और जो कुछ वे हमें दे गए हैं, यह अक्षय है, अमर है और इसलिये वे भी हमारे बीच, सदा-सर्वदा के लिए अभिन्न हैं । युग-युग तक आयुर्वेद के साथ वे भी अमर हैं।
सिद्धयोग संग्रह उन्हीं प्रकाश-मणियों में से एक है, जो पूज्यवाद यादवजी के वरदान-सदृश हमारे-आपके पास है। इसके अधिकाधिक अनुशीलन और मनन से हमें ज्योति मिलेगी; वह ज्योति जो हमारे चिकित्साकार्य को चमत्कार से पूरित कर दे।
हमें विश्वास है कि आयुर्वेद-जगत् पूज्यपाद यादवजी के न होनेपर, उनकी स्मृति को सुरक्षित रखकर, अपने कर्त्तव्य का पालन करेगा और उनके सद्ग्रन्थों को पहले से अधिक उत्साह के साथ अंगीकृत करेगा।
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